जिम्मेदारी
किसी भी महामारी को ना फैलने देने की जिम्मेदारी जनता पर होती है। ये महामारी लोगों से लोगों में फैलती है, तो जिम्मेदारी भी लोगों की ही है। विशेषज्ञ भी यही सलाह देते हैं। सरकारें उन्हीं सलाहों पर अमल करती हैं। ऐसे समय में त्वरित निर्णय लिए जाते हैं, जो सही गलत की कसौटी पर नहीं कसे का सकते, क्यूंकि सही गलत के लिए पूर्व में ऐसी समस्याओं का ज्ञान होना चाहिए।
तो सरकारें, दूसरे देशों की, दूसरे प्रांतों की दशा देख कर उचित निर्णय लेती है। यहां व्यावहारिकता और छोटी मोटी असहजता को पैमाने पर नहीं रखा जा सकता, क्यूंकि निर्णय त्वरित होता है, विशेषज्ञों पर भरोसे के आधार पर होता है।
किन्तु,
सरकारें और प्रशासन आपको केवल दिशा निर्देश दे सकते हैं, कुछ पाबंदियां लगा सकते हैं। इससे ज्यादा वो कुछ खास कर नहीं सकते, खासकर तब जब बीमारी का इलाज मौजूद ना हो।
लगभग सभी देशों ने पाबंदियां लगाईं और दिशा निर्देश दिए। मगर वही देश पूर्णतः या अंशतः सफल रहे जहां की जनता कम मूर्ख थी।
हमारे लिए बहुत आसान है किसी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति पर दोष मढ़ देना, मगर हम ये भूल जाते हैं, सत्ता में बैठे लोग अपने सर पर लाशों का बोझ कभी नहीं चाहते।
अमेरिका में घोषणाओं के बाद फ्लोरिडा और न्यू यॉर्क में पार्टी करना, भारत में, लॉकडाउन घोषित होते ही ५००० लोगों का पुणे स्टेशन पे जमा होना, पहले हफ्ते २.५ लाख के करीब लोगों का दिल्ली में जमा होना, दूसरे लॉकडाउन में गुजरात, महाराष्ट्र में भीड़ इकट्ठी करना, तीसरे लॉकडाउन में लाखों लोगों का मुंबई में इकट्ठा होना, जनता की बेवकूफी थी, भले ही किसी भी भय या उकसावे में किया गया हो।
लॉकडॉउन कोई छुट्टी का ऐलान नहीं था, मगर भारत भर के लोग इसे छुट्टियों जैसे मानकर अपने घरों की ओर लपके। वो भी, जिनको जहां थे वहां सहूलियत थी। प्रशासन भरसक प्रयास करती रही, मगर मदद लेने भी नहीं आता हमें।
मुंबई और पुणे के कुछ बाज़ार तो कभी बंद हुए ही नहीं, और लोगों ने लॉकडाउन का मज़ाक बना रखा था।
आज के आंकड़े, उन्हीं बेवकूफियों और उसी मज़ाक का परिणाम मात्र है। ४ लॉकडॉउन के बाद, अगर जनता ठीक से पालन करती, तो हम इससे उबर चुके होते। आज लॉकडॉउन खोलना भविष्य के लिए मजबूर कर रही है। सरकारों ने दिशा निर्देश के साथ पाबंदियां हटाई, किन्तु फिर जिम्मेदारी जनता पर ही है।
सरकारें उत्तरदाई हैं, बहुत से मसलों पर, मगर जब ऐसे समय में राजनेताओं से हम राजनीति ना करने की उम्मीद करते हैं, क्या हमने अपने राजनैतिक विचारधारा से ऊपर उठकर अपने प्रशासन, राज्य सरकार या केंद्र सरकार को पूरा सहयोग दिया?
हम में से अधिकांश लोगों ने सरकारों का साथ दिया। भारत की आबादी १३० करोड़ के पार है। गरीब भी ४० करोड़ से ऊपर। अधिकांश गरीब घर बैठे रहे। मगर चंद मूर्खों ने उन गरीबों और अच्छे नागरिकों के लिए कराए पर पानी फेर दिया।
महामारी सुरक्षा कड़ी टूटने से विकराल होती है, और उस सुरक्षा चक्र के ना टूटने की जिम्मदारियां जनता पर थी। लेकिन जनता कभी जिम्मेदार बनती दिखी ही नहीं। अनपढ़ को छोड़िए, पढ़े लिखे भी जिम्मेदार नहीं दिख रहे।
हम आंकड़ों में शामिल ना हों, ये प्रयास होना चाहिए। आंकड़े बनकर ना रहें। आंकड़े बीमार, बीमारी के बाद जांच, बीमारी के बाद स्वस्थ अथवा मृत्यु, इनके ही आएंगे। आप स्वस्थ हैं तो आप आंकड़ों में नहीं आएंगे।
ये महामारी का समय है। हम आप ही नहीं, सरकारें भी पहली बार ऐसी समस्या का सामना कर रहे हैं। ऐसे में हमें उनकी मदद करनी है, राजनीति नहीं।
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