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न्याय या अन्याय?

जिस देश में एक बड़ा वर्ग शिक्षा से वंचित है, उस देश में कानून का पेंचीदा होना और उससे भी ऊपर कानूनी आदेशों का कानून से भी अधिक पेंचीदा होना अन्याय है। सामान्य कानून सरल क्यों नही हैं? कितने ही मामलों में पेंचीदगी की जरूरत नहीं। कानूनी आदेश स्पष्ट और सरल क्यों नहीं होते? क्यों किसी आदेश को समझने के लिए विशेषज्ञों की एक पूरी टोली चाहिए होती है? अगर किसी भी कानून की व्याख्या अलग अलग विशेषज्ञ अलग अलग करें तो समस्या व्याख्या में नही, कानून में है। और अगर किसी आदेश की व्याख्या भी अलग अलग हो सके, फिर न्यायधीश ही समस्या हैं। न्यायालयों और न्यायधीशों के सामने बेगुनाह आम जनता डरी सहमी रहती है और कानूनी पेंचीदगियों के जानकार गुनहगार विश्वस्त और आश्वस्त। ये स्थिति सड़ी हुई न्याय व्यवस्था और शक्ति के मद में चूर न्याय के पुरोधाओं के कारण है। अगर भारत किसी एक व्यवस्था में सबसे ज्यादा विफल रहा है, किसी भी एक क्षेत्र में, तो वह न्याय व्यवस्था ही है। न्याय का न मिलना या अत्यधिक देर से मिलना या जटिल न्यायिक प्रक्रिया या न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होना, ये आम बात है। क्या न्यायधीशों ने अपनी न्याय व्यवस